‘माफी मांगने से अच्छा है मौत हो जाये’

 गणेशशंकर विद्यार्थी

(महान पत्रकार एवं देशभक्त गणेशशंकर विद्यार्थी के ये तीन पत्र उस चेतना का प्रतीक हैं जो आज़ादी की लड़ाई के दौरान देश के मानस को प्रभावित कर रही थी.)

(पत्नी के नाम)

मेरी परम प्यारी प्रकाश,

कल तुम्हारा पत्र प्राप्त हुआ. तुमने जो कुछ लिखा है, वह बिल्कुल ठीक है. माफी मांगने से अच्छा यह है कि मौत हो जाये. तुम विश्वास रखो कि मैं बेइज्ज़ती का काम नहीं करूंगा. तुमने जो साहस दिलाया उससे मेरे जी को बहुत बल मिला. मुझे तुम्हारी और बच्चों की बहुत चिंता है. परंतु तुम्हारा हृदय कितना अच्छा और ऊंचा है, उससे मेरे मन को बहुत संतोष हो रहा है. ईश्वर तुम्हारे मन को दृढ़ रखे. अगर तुम दृढ़ रहोगी तो मेरा मन कभी न डिगेगा. मैं तुमसे कोई बात छिपाना नहीं चाहता.

मैं खुशी से तैयार हूं. जो मुसीबतें आयेंगी मैं उन्हें हंसते-हंसते झेल लूंगा. लेकिन मेरी हिम्मत को कायम रखने के लिए यह आवश्यक है कि तुम अपना जी न गिरने दो. हां, माखनलालजी के साथ मैं उनके घर जा रहा हूं. होली वहीं करूंगा. होली के बाद दूज या तीज को मैं कानपुर पहुंचूंगा और उसी दिन दोपहर तक मैं अपने को पुलिस के हाथों में दूंगा. मैं सीधे ही पुलिस के हाथों में अपने को दे देता, मगर एक बार तुम लोगों को देख लेना धर्म समझता हूं. देखो, ईश्वर और धर्म पर विश्वास रखो. आज कष्ट के दिन सिर पर हैं. कल सुख के दिन भी आवेंगे. धर्म के लिए सहे जाने वाले कष्ट के दिनों के बाद जो दिन आवेंगे, वे परमात्मा की कृपा से अच्छे सुख के दिन होंगे.

हरि, कृष्ण, विमला और ओंकार को प्यार.

तुम्हारा

गणेश शंकर

(मां के नाम)

पूजनीय मां,

मैं तुम्हें कुछ भी सुख न पहुंचा सका. सदा कष्ट देता रहा. फिर कष्ट दे रहा हूं. पिता की यह दशा है तो भी मैंने हृदय पर पत्थर धर लिया है. एक प्रकार से मैं बड़ा पापी हूं. अम्मां, इस बार और क्षमा करो. अगर इस बार मेरे पैर पीछे पड़ते हैं, तो ज़िंदगी विषतुल्य हो जायेगी. तुम्हारे पुण्य प्रताप से मैंने अब तक बहुत सहा है. तुम आशीष दो कि मेरा हृदय अटल बना रहे और मैं सब कुछ सह लूं. तुम धीरज न त्यागना. धर्म का काम है. धर्म के मार्ग में विपत्तियां आती हैं. परंतु फिर, बाद को, फल अच्छा मिलता है. तुम आशीष दोगी, तो मेरी आत्मा को बल मिलेगा.

हरि की माता तुम्हारे चरणों में है. उस स्त्राr को आज तक मुझसे कोई सुख नहीं मिला. उसका हृदय सदा दबा हुआ रहा. जहां तक बने उसके मन को उठाये रखना.

एक बार चरणों के दर्शन करूंगा.

चरण-रज

गणेशशंकर

 (बड़ी पुत्री के नाम)

हरदोई जेल

(26 मई 1930 से 15 मार्च 1931 के मध्य का कोई समय)

प्यारी कृष्णा

प्रसन्न रहो

अपनी माता से कह देना कि वह तनिक भी न घबरायें. मैं बहुत अच्छी तरह हूं. तबीयत अच्छी है. मेरी वह चिंता न करें. ईश्वर की कृपा से मैं सकुशल घर लौटूंगा. इस समय उन पर जो विपत्ति है, देश के हज़ारों भले परिवारों पर वह विपत्ति है. हम लोग धर्म का काम रहे हैं. हम सबको यह संतोष होना चाहिए कि हमें जो कष्ट झेलना पड़ रहा है, वह किसी पापकर्म के लिए नहीं है. हमारे कष्टों से अवश्य ही परमपिता हमारा कल्याण करेंगे. इन कष्टों की समाप्ति के पश्चात अच्छा समय आयेगा. ईश्वर और धर्म की सत्ता पर विश्वास रखो.

सस्नेह

गणेशशंकर विद्यार्थी

 

(जनवरी 2016)

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