मान की मृत्यु

♦  शम्स नवेद     

     मुबारिजुलमुल्क का व्यक्तित्व प्रभावशाली था. वह ऊंचा-पूरा, बदन का चुस्त और तगड़ा था. उसकी दाढ़ी कमरपट्टे को छूती थी और मूंछे घनी और ऊपर की ओर मुड़ी रहती थीं. उसे देखकर उसके साथियों के मन में भी भय उत्पन्न हो जाता था. नुसरतुलमुल्क के बाद वह ईडर का गवर्नर होकर आया. जिस समय उसके आने की खबर नुसरतुलमुल्क को मिली, उसने तम्बू, धन और हाथी भेजकर मुबारिजुलमुल्क का खूब स्वागत किया और भोज के साथ उत्सव मनाया.

    मुबारिजुलमुल्क गुजरात के मुजफ्फरशाह के मातहत काम करता था और उसी के आदेश से वह ईडर आया था. ऐसा कहा जाता है कि सुरक्षा और किलेबंदी की दृष्टि से ईडर सर्वोत्तम स्थानों में से एक था. वह पहाड़ की चोटी पर बसा हुआ था. प्रकृति के द्वारा निर्मित गहरी खाइयां और नाले उसके चारों ओर इस तरह फैले हुए थे कि कोई भी दुश्मन आसानी से किले तक नहीं पहुंच सकता था.

    ऐसे दुर्गम और अभेद्य किले का गवर्नर होने के नाते मुबारिजुलमुल्क को बहुत घमंड हुआ. उसे दुश्मन का डर नहीं था. इसलिए वह निश्चिंत होकर अपना सारा समय ऐशोआराम में व्यतीत करने लगा. यहां तक कि वह अपने राज्य के शासन और जनता के हितों की भी अवहेलना करने लगा. लोग कहते हैं कि उसने अपने हरम में बेशुमार औरतें इकट्ठी रखी थीं.

    मुबारिजुलमुल्क, जो अपने ऐशोआराम में मदहोश तथा शक्ति से घमंड में अंधा हो रहा था, अपने एक दरबारी के मुंह से राणा संग्राम की वीरता और दयालुता की प्रसंसा सुनकर नाराज हो उठा.

    ‘मैं अपने दुश्मन की तारीफ नहीं सुन सकता,’ मुबारिजुलमुल्क ने कठोर स्वर में कहा- ‘मेरे सुल्लतान मुजफ्फरशाह की तुलना में सांगा कुछ नहीं है. इसलिए मेरे दरबार में गुजरात के सुल्लतान मुजफ्फरशाह के सिवा और किसी की तारीफ नहीं होनी चाहिए.’

    दरबारी ने नम्र होकर विनयपूर्वक कहा- ‘मेरे मालिक, मैंने उस बहादुर योद्धा को देखा है. उसका भाला पत्थरों को भेद जाता है और उसकी तलवार से दुश्मन के कवच टूट जाते हैं. उसकी सबसे बड़ी विशेषता उसका आत्मसम्मान है.’

    ‘चुप रहो.’ मुबारिजुलमुल्क ने चिल्लाकर कहा- ‘इस बेकार की बकवास को सुनने के लिए मेरे पास वक्त नहीं है.’

    मुबारिजुलमुल्क का क्रोध देखकर दरबारी चुप हो गया, किंतु मुबारिजुलमुल्क इतना क्रुद्ध हुआ कि उसने एक कुत्ते का नाम संग्राम रखा और उसे किले के एक दरवाजे से बांध दिया. फिर उसने उस दरबारी से कहा कि वह राणा सांगा से जाकर कहे कि यदि सचमुच उसमें शक्ति और साहस हो तो वह आकर इस कुत्ते को मुक्त करें.

    इस सनकी निर्णय पर सारे दरबार में खामोशी छा गया और मुबारिजुलमुल्क के सामने किसी की बोलने की हिम्मत नहीं हुई. किंतु अचानक जमांखान लोधी उठ खड़ा हुआ. वह पुराना और अनुभवी दरबारी था. साथ ही वह मुबारिजुलमुल्क का सम्बंधी भी था. उसकी बहन रजिया मुबारिजुलमुल्क की पत्नी थी. उसने कहा- ‘आप अपने निर्णय पर एक बार फिर सोच लीजिए. क्रोध में कोई निर्णय लेना…’

    यद्यपि मुबारिजुलमुल्क जमांखान लोधी की बहुत इज्जत करता था, किंतु उसने बीच में ही टोकते हुए कहा- ‘मैंने जो निर्णय ले लिया है, बहुत सोच-विचार के बाद ही लिया है. राणा सांगा में इतना साहस नहीं है कि वह ईडर पर आक्रमण करे.’

    जमांखान लोधी चुप हो गया.

    राणा ने जब यह अपमानजनक समाचार सुना तो वह क्रोध से तिलमिला उठा. उसने तुरंत अपनी सेना इकठ्ठी की और ईडर की ओर चल पड़ा. इधर मुबारिजुलमुल्क के दरबारी उसके नीचतापूर्ण कार्य के परिणामस्वरूप राज्य के लिए उत्पन्न संकट से इतने अधिक क्षुब्ध थे कि उन्होंने इसकी सूचना मुजफ्फरशाह को दे दी तथा उससे प्रार्थना की कि वह किसी भी प्रकार की सहायता मुबारिजुलमुल्क को न भेजे. आक्रमण का समाचार सुन मुबारिजुलमुल्क घबराया, क्योंकि उसके पास केवल पांच हजार सैनिक थे. उसने तुरंत मुजफ्फरशाह से सहायता भेजने के लिए प्रार्थना की.

    उसकी इस प्रार्थना के उत्तर में मुजफ्फरशाह ने संदेश भेजा- ‘तुम्हें कोई सहायता नहीं मिलेगी. तुमने एक शरीफ और बहादुर आदमी का व्यर्थ ही अपमान किया है. इसलिए तुम उसका परिणाम भोगने के लिए तैयार रहो.’

    बादशाह का फरमान सुनकर मुबारिजुलमुल्क के होश गायब हो गये. वह अहमदनगर भाग जाने की तैयारी करने लगा. उसे इतनी घबराहट में देखकर उकी पत्नी रजिया ने कहा- ‘यदि आपने मेरे भाई जमांखान की सलाह मान ली होती तो आज इस तरह भागने की नौबत न आती.’

    मुबारिजुलमुल्क बहुत लज्जित हुआ और बोला- ‘जब बादशाह मुजफ्फरशाह ने मुझे सहायता देने से इंनकार कर दिया, तब तुम्हीं बताओ, मैं पांच हजार सैनिकों की इस छोटी-सी टुकड़ी से क्या कर सकता हूं?’

    ‘तुमने अपने अपमान के बारे में सोचा?’ रजिया ने कड़े स्वर में कहा- ‘सांगा कुत्ते को मुक्त कर लेगा और बादशाह तुम्हारी इस कायरता के लिए तुम्हें इतना नीचा दिखायेगा कि उसकी तुलना में हार लाख गुना अच्छी है. जब तुमने दुश्मन को ललकारा ही है, तो बहादुरी से उसका सामना करो.’

    ‘यह असम्भव है.’ मुबारिजुलमुल्क ने जवाब दिया- ‘सेना निराश हो रही है और कोई जंग के लिए तैयार नहीं है. फिर बेकार अपनी जान गंवाने से क्या फायदा?’

    ‘अब सोचने का वक्त नहीं हैं,’ रजिया ने उत्तर दिया- ‘एक बहादुर की तरह कुत्ते को बचाओ. हार या जीत खुदा के हाथ है.’

    ‘मुझमें इतनी ताकत और हिम्मत नहीं.’ मुबारिजुलमुल्क ने सोचते हुए कहा- ‘लड़ाई के मैदान में राणा सांगा का सामना करना मेरे बस की बात नहीं.’

    थोड़ी देर रजिया खामोश रही. फिर उसने कहा- ‘राणा सांगा को इतनी आसानी से कुत्ते को मुक्त नहीं करने दिया जायेगा.’

    आश्चर्य से रजिया की ओर देखते हुए मुबारिजुलमुल्क ने पूछा- ‘यह तुम कह रही हो, रजिया?’

    आवेश में आकर रजिया ने क्रोध-भरे स्वर में कहा- ‘हां, मैं वही बात कह रही हूं, जो हर एक इज्जतदार औरत कहेगी. जाओ, तुम गुजरात के बादशाह के पैरों पर गिरो. मैं ईडर की इस सेना को लेकर सांगा का मुकाबला करूंगी और उस इज्जत की रक्षा करूंगी, जिसके लिए तुमने दुश्मन को ललकारा है.’

    आवेश के कारण रजिया का चेहरा क्रोध से लाल हो रहा था और मुबारिजुलमुल्क उसे एकटक देख रहा था.

    सांगा की चालीस हजार बहादुर सेना ईडर के दरवाजे पर आ पहुंची और मुबारिजुलमुल्क और उसके कायर साथी अहमदनगर की ओर भाग खड़े हुए.

    दूसरे दिन केवल एक सौ बचे हुए बहादुर और ईमानदार सैनिकों को लेकर रजिया सांगा के चालीस हजार बहादुर सैनिकों का मुकावला करने चल पड़ी. दुश्मन की सेना की इतनी कम संख्या देख सांगा ने एक सैनिक से कहा- ‘तुम लोग व्यर्थ अपनी जान गंवाने क्यों आये हो?’

    ‘हम शहीद होना चाहते हैं.’ सैनिक ने उत्तर दिया.

    ‘यदि मैं केवल ईडर जीतने के लिए आया होता, तो सैनिकों की इस छोटी-सी टुकड़ी से लड़ाई लेने के बजाय वापस लौट जाना ज्यादा पसंद करता, लेकिन चूंकि मुबारिजुलमुल्क ने किले के दरवाजे पर वह कुत्ता बांध रखा है, मुझे उसे मुक्त करना ही होगा.’

    जंग तेजी पर थी. रजिया के सैनिक बहादुरी से लड़ते हुए एक के बाद एक खत्म हो रहे थे. उसी समय रजिया की सेना का एक घायल सैनिक किले के दरवाजे की तरफ तेजी से दौड़ता हुआ नज़र आया.

    ‘जमांखान! क्या तुम अपने वंश के नाम पर धब्बा लगाना चाहते हो?’ एक सैनिक ने चिल्लाकर कहा.

    ‘नहीं, नहीं.’ जमाखांना ने उत्तर दिया- ‘अब हम पांच बच गये हैं और मैं सांगा की कुत्ते को मुक्त करने की इच्छा पूरी नहीं होने दूंगा.’ किंतु जमांखान का यह लड़खड़ाता साहस इतनी बड़ी सेना के मुकाबले व्यर्थ था. राजपूत किले में प्रवेश कर चुके थे. जमांखान और राजपूत एक साथ कुत्ते के पास पहुंचे. जमांखान अपने भाले से कुत्ते को मारना ही चाहता था कि इसी समय एक राजपूत की तलवार जमांकान को लगी और भाला उसके हाथ गिर गया. वह घोड़े पर कूद पड़ा और तलवार लेकर कुत्ते की ओर लपका. राजपूत भी अपने घोड़ों पर से कूद पड़े और कुत्ते की ओर लपके, ताकि जमांखान उसे मार न सके.

    ठीक इसी समय एक अनजान सैनिक तेजी से घोड़ा दौड़ता हुआ आया और उसने कुत्ते को कुचल डाला. फिर घोड़े पर से कूदकर उसने कुत्ते का काम तमाम कर दिया.

    सैकड़ों तलवारें और भाले एक साथ जमांखान और उस अनजान सैनिक के शरीरों को भेदते हुए चल पड़े. दोनों सैनिक खेत रहे.

    युद्ध समाप्त हुआ. ईडर पर राणा की विजय हुई. किंतु जब राणा को पता चला कि कुत्ते का काम तमाम करने वाला एक अनजान सैनिक रजिया थी- एक औरत थी- तो वे विचलित हो उठे. कुत्ते की लाश पर पड़ी उस बहादुर औरत की लाश को वे देर तक देखते रहे और न जाने क्या-क्या सोचते रहे. मान और अपमान दोनों मर चुके थे.

(मई  2071)

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