‘धन के उपयोग से किसी पर अन्याय न हो’

(घनश्यामदास बिड़ला का पुत्र बसंत कुमार बिड़ला के नाम 1934 में लिखित पत्र)

चि. बसंत…

यह जो लिखता हूं उसे बड़े होकर और बूढ़े होकर भी पढ़ना, अपने अनुभव की बात कहता हूं. संसार में मनुष्य जन्म दुर्लभ है और मनुष्य जन्म पाकर जिसने शरीर का दुरुपयोग किया, वह पशु है. तुम्हारे पास धन है, तंदुरुस्ती है, अच्छे साधन हैं, उनको सेवा के लिए उपयोग किया, तब तो साधन सफल हैं अन्यथा वे शैतान के औज़ार हैं. तुम इन बातों को ध्यान में रखना. धन का मौज-शौक में कभी उपयोग न करना. ऐसा नहीं कि धन सदा रहेगा ही, इसलिए जितने दिन पास में है उसका उपयोग सेवा के लिए करो, अपने ऊपर कम से कम खर्च करो, बाकी जनकल्याण और दुखियों का दुख दूर करने में व्यय करो. धन शक्ति है, इस शक्ति के नशे में किसी के साथ अन्याय हो जाना सम्भव है, इसका ध्यान रखो कि अपने धन के उपयोग से किसी पर अन्याय न हो. अपनी संतान के लिए भी यही उपदेश छोड़कर जाओ. यदि बच्चे मौज-शौक, ऐश-आराम वाले होंगे तो पाप करेंगे और हमारे व्यापार को चौपट करेंगे. ऐसे नालायकों को धन कभी न देना, उनके हाथ में जाये उससे पहले ही जनकल्याण के किसी काम में लगा देना या गरीबों में बांट देना. तुम उसे अपने मन के अंधेपन से संतान के मोह में स्वार्थ के लिए उपयोग नहीं कर सकते. हम भाइयों ने अपार मेहनत से व्यापार को बढ़ाया है तो यह समझकर कि वे लोग धन का सदुपयोग करेंगे.

भगवान को कभी न भूलना, वह अच्छी बुद्धि देता है, इंद्रियों पर काबू रखना, वरना यह तुम्हें डुबो देंगी. नित्य नियम से व्यायाम-योग करना. स्वास्थ्य ही सबसे बड़ी सम्पदा है. स्वास्थ्य से कार्य में कुशलता आती है, कुशलता से कार्यसिद्धि और कार्यसिद्धि से समृद्धि आती है, सुख-समृद्धि के लिए स्वास्थ्य ही पहली शर्त है. मैंने देखा है कि स्वास्थ्य सम्पदा से रहित होने पर करोड़ों-अरबों के स्वामी भी कैसे दीन-हीन बनकर रह जाते हैं. स्वास्थ्य के अभाव में सुख-साधनों का कोई मूल्य नहीं. इस सम्पदा की रक्षा हर उपाय से करना. भोजन को दवा समझकर खाना. स्वाद के वश होकर खाते मत रहना. जीने के लिए खाना है, न कि खाने के लिए जीना है.                        

– घनश्यामदास बिड़ला

 (जनवरी 2016)

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