कुत्तागीरी

♦  विष्णु नागर   >

एक कुत्ता था, वह अपनी सिद्धांतवादिता के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध था. वह पूंछ वहीं हिलाता था, जहां हिलाना ज़रूरी होता था वरना कुछ भी हो जाए, वह हिलाता ही नहीं था. वह भौंकता भी तभी था, जब इसका ठोस-वस्तुगत कारण उपस्थित हो. वह नियमपूर्वक पेशाब सड़क पर ही करता था, उसने कभी टॉयलेट का इस्तेमाल नहीं किया. उसने तय कर रखा था कि जीवनभर नंगे रहना है तो इस पर वह अंत तक कायम रहा, इस पथ से वह कभी विचलित नहीं हुआ, भले कैसी ही विकट चुनौतियां उसके सामने आयीं और प्रेम उसने आजीवन सिर्फ और सिर्फ कुतियाओं से ही किया और अन्य समस्त प्रस्ताव उसने दृढ़तापूर्वक ठुकराये.

लोग उसकी सिद्धांतवादिता के कायल होने लगे और ऐसा जाने क्यों हो गया कि उसकी आध्यात्मिक छवि बनने लगी और तमाम बड़े-छोटे और खोटे गुरुओं के होते हुए लोग उसकी शरण में आने लगे क्योंकि मनुष्यों में ऐसा कोई बचा नहीं था, जो इतना सिद्धांतनिष्ठ हो. फेसबुक-ट्विटर पर उसकी चर्चा होने लगी जिसका परिणाम यह हुआ कि उसके भक्तों की संख्या लाखों में हो गयी. वह जहां जाता, मनुष्य उसके पीछे-पीछे भजन-कीर्तन करते हुए चलने लगे. उसे भूख बाद में लगती, उसके सामने व्यंजन पहले परोसने लगे और जो बच जाता उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करने लगे. ससुरे को इतना खिलाते-पिलाते कि वह खा-खाकर पस्त हो जाता. वह मोटा से मोटा होने लगा. उसकी यह हालत देखकर और कुत्ते उसके पास आते कि चलो अपने हाथ भी कुछ लग जाएगा मगर भक्तगण उन्हें डंडा मारकर भगा देते, हालंकि इससे कुत्ते को शायद बुरा लगता था मगर धीरे-धीरे उसने इस पर आपत्ति दर्ज करना बंद कर दिया, वह समझ गया कि शेष कुत्ता-जाति से एकता दिखाना उसके लिए नुक्सानदेह साबित हो सकता है. 

उसके भौंकने और भागने की तमाम कोशिशों को विफल करके भक्तों ने उसे गुरु को शोभा दे, ऐसे कपड़े पहना दिये.

एक भक्त उसका ऐसा भी पैदा हो गया जो उस कुत्ते के भौंकने के आध्यात्मिक अनुवाद भक्तजनों के सम्मुख करता और सब इसे ध्यान से सुनते. इस प्रकार वह भी माल काटने लगा.

कुत्ते की महिमा ऐसा फैली, ऐसी फैली कि विश्वभर में व्याप्त हो गयी और बड़े-बड़े साधु संन्यासी, राजा, प्रधानमंत्री, मंत्री वगैरह-वगैरह सब उसका चमत्कार देखने आने लगे. वह चार्टर्ड विमान से अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा वगैरह जाने कहां-कहां घूम आया.

खैर कुत्ते का जीवन वैसे ही लम्बा नहीं होता मगर खा-खाकर और पी-पीकर वह तमाम रोगों का शिकार हो गया और उनसे लड़ते हुए और तमाम भोग करते हुए, एक दिन वह इस निस्सार संसार से मात्र आठ वर्ष की आयु में विदा हो गया.

जाहिर है कि उसकी समाधि बन गयी और उस पर भक्तों की उससे भी गज्यादा भीड़ लगने लगी जितनी कि उसके ज़िंदा रहते भी नहीं लगती थी. लोग देश-विदेश से वहां आने लगे और पास होने से लेकर शादी होने और बुड्ढे को दुनिया से उठाने की दुआ मांगने आने लगे. खूब चढ़ावा आने लगा, जो उस समय के सभी प्रसिद्ध धर्मिक स्थलों को प्राप्त योग से भी अधिक हो गया. वहां चारों ओर बड़े-बड़े लाउडस्पीकर लग गये, जिनके ज़रिये चौबीस घंटे उसके भजन इत्यादि गाये जाने लगे. वह जगह कुत्ताधाम के नाम से मशहूर हो गयी और वहां हर महीने की पच्चीस तारीख को मेला लगने लगा. लब्बेलुबाब यह कि वहां कानफोड़ू संगीत का ऐसा मजमा लगा रहता कि अच्छे-अच्छे कानवाले वहां से बहरे होकर वापिस जाने लगे और इसे गुरुजी का आशीर्वाद मानकर धन्य होने लगे.

एक दिन ऐसा हुआ कि अपनी समाधि फोड़कर वह कुत्ता जो कई महीने पहले ही मरकर दफ्न भी हो चुका था, भाग गया और ऐसा भागा, ऐसा भागा कि तमाम प्रयासों के बावजूद उसका कहीं पता नहीं चला.

कुछ मानते हैं कि वह ईश्वर का अवतार था, अदृश्य हो गया. कोई कुछ कहते हैं, कोई कुछ, मगर कहते सब हैं. बहरहाल बाद में बताया गया कि यह मात्र अफवाह थी. समाधि उनकी ठीक करने के बाद यह कहा जाने लगा कि वे कुछ दिनों के लिए एकांत में तपस्या करके लौट आये हैं और उन्होंने स्वयं आकर अपने को समाधि के अंदर बंद कर लिया है और कहा है कि इसे पूर्ववत ढंक दो, अब मैं कहीं नहीं जाने वाला और तब से भक्तों का प्रवाह और बढ़ गया है और जो नहीं आता है, वह ऐसा अपनी और अपने करियर की रिस्क पर करता है.

एक कुत्ता था, जैसे कि सभी कुत्ते होते हैं. वह ठोस-वस्तुगत परिस्थिति में ही अपनी पूंछ हिलाता था और यही बात वह भौंकते समय भी करता था. स्वामिभक्ति वैसे तो उसके जींस में थी मगर उसका कोई स्वामी नहीं था क्योंकि वह देसी था और सड़क पर रहता था, अतः जो कोई उसे जो कुछ दे देता था, उस समय के लिए उसका मालिक बन जाता था और जैसे ही किसी से उसे मिलने की उम्मीद नहीं रहती, वह उसे भूल जाता और अपना रास्ता पकड़ लेता था. जीने का और कोई तरीका भी नहीं था.

लेकिन लोगों की उसके बारे में न जाने क्यों यह भ्रम हो गया था कि वह अवसरवादी है और वह कुत्ता था इसलिए न इस बात का मंडन करता था, न खंडन. लिहाजा लोग उसकी छाया से भी बचने लगे, उसे रोटी देना तक लोगों ने बंद कर दिया, जूठन तक उसे खाने नहीं देते थे मगर वह वैसा ही रहा, जैसा वह था क्योंकि कुत्ता था. धीरे-धीरे उसकी यह छवि बन गयी कि अवसरवादी होने के कारण वह हर कहीं घुसना जानता और अपना काम कराना जानता है, जिससे भी उसका काम निकल सकता है उनके सामने पूंछ हिलाता है और इतनी हिलाता है कि सामनेवाले के पास उसका काम करने के अलावा कोई चारा नहीं रहता, अतः वह ताकतवर बन गया है और अगर वह कोई काम कराना चाहे तो शर्तिया तौर पर हो जाता है.

लोग जो उसकी छाया तक से भागते थे, तुरंत उसकी छाया में आने के लिए आतुर होने लगे, उसका दामन पकड़कर चलने लगे. वह भौंकता तो वाह-वाह करते, वह धूल में लोटता तो उसकी तरफ आदर की दृष्टि से देखते. यहां तक स्थिति आ गयी कि वह ज़मीन पर अवशिष्ट पदार्थ निकालना चाहे तो उसे निकालने नहीं देते थे, कहते थे कि हमारे हाथ पर निकालिए और उसका पिछवाड़ा उसके बिना कहे साफ़ कर देते थे, जबकि वह इसकी कोई ज़रूरत महसूस नहीं करता था. उसे सुंगधित साबुनों से नहलाते थे और रोज़ नये तौलिए से उसका बदन मलमलकर पोंछते थे. उसे कप में चाय पिलाते, गर्मी आ जाती तो उसके लिए कभी कोकाकोला और कभी पेप्सी कोला ले आते और उसे कभी वह भी नहीं भाता तो उसे ब्रांडेड जूस पिलाते. वह नंगा न रहे इसलिए उसे कपड़े पहनाते. गर्मी में  उसे लखनवी चिकन का कुर्ता पहनाते और ठंड में सूट पहनाते. यहां तक कि कुछ तो उसके लिए नयी-नयी टाइयां ले आये. उसके सामने नोट की गड्डियां रख दीं और जब वह इनकी तरफ आकर्षित नहीं हुआ तो दस्तखत करके खाली चेक उसके सामने रख दिये ताकि आप ही अमाऊंट चढ़ा. कुछ ने उसके नाम बैंक खाता तक खुलवा दिया. कुल मिलाकर उसकी इतनी चमचागीरी होने लगी कि वह तंग आ गया और भौंक-भौंक कर उन्हें भगाने लगा और जो नहीं भागते, उनके पीछे लग जाता. मगर लोग फिर भी न माननेवाले नहीं मानते, उसके सामने फिर-फिर लौट-लौट आ जाते.

लेकिन एक दिन पता नहीं क्या हुआ, उसे जीवन की निस्सारता का  बोध हो गया या उसे पता चल गया कि उसके पास अब समय कम बचा है और जितना बचा है उसका सदुपयोग राम का नाम स्मरण करके बिताना चाहिए या पता नहीं क्या हुआ कि अचानक वह देर रात को उस समय उठकर कहीं चला गया, जब चराचर जगत सोया हुआ था और सत्य की खोज में गये लोगों की तरह वह कभी नहीं लौटा.

वह अपने चमचों को दरबदर कर गया है, उनके काम अधूरे छोड़ गया है, उनके पैसे अटका गया है, उनका धंधा चौपट कर गया है. उसके चमचे योग्य गुरु की तलाश में जुट गये और जब नहीं मिला तो खुद उसके जैसे बन गये.

(मार्च 2014)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *